hindisamay head


अ+ अ-

कविता

लुहार

हरे प्रकाश उपाध्याय


लोहे का स्वाद भले न जानते हों
पर लोहे के बारे में
सबसे ज्यादा जानते हैं लुहार
मसलन लुहार ही जानते हैं
कि लोहे को कब
और कैसे लाल करना चाहिए
और उस पर कितनी चोट करनी चाहिए

वे जानते हैं
कि किस लोहे में कितना लोहा है
और कौन-सा लोहा
अच्छा रहेगा कुदाल के लिए
और कौन-सा बंदूक की नाल के लिए
वे जानते हैं कि कितना लगता है लोहा
लगाम के लिए

वे महज
लोहे के बारे में जानते ही नहीं
लोहे को गढ़ते-सँवारते
खुद लोहे में समा जाते हैं
और इंतजार करते हैं
कि कोई लोहा लोहे को काटकर
उन्हें बाहर निकालेगा
हालाँकि लोहा काटने का गुर वे ही जानते हैं
लोहे को
जब बेचता है लोहे का सौदागर
तो बिक जाते हैं लुहार
और इस भट्टी से उस भट्टी
भटकते रहते हैं!

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में हरे प्रकाश उपाध्याय की रचनाएँ